यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं
प्रजपतेर्यत्सहजं पुरस्तात् |
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं
यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज:|
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा
यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ||
पारस्कर गृहसूत्र २/२/१०
यज्ञोपवीत महिमा
तर्ज :- ऐ दिल जरा संभल जा शायद वह आ गया है |
यज्ञोपवीत लेकर खुद को निहारना है |
जीवन सुधारने का संकल्प धारना है |
जीवन .....
हर झूठ की तरफ से मुहं अपना फेरना है |
सच्चे व्रतों का पालन करने की प्रेरणा
है |
ताप त्याग साधना को हरदम उभारना है |
जीवन .....
गायत्री जाप संध्या स्वाध्याय यज्ञ
करना |
दुष्टों की संगति में हरगिज न पाँव
धरना |
भगवान को कभी न दिल से बीसारना है |
जीवन ....
समझो ये तीन ऋण हैं, कंधे पे तीन धागे
|
जब तक हैं प्राण इन से व्यक्ति कभी न
भागे |
माता पिता गुरु के ऋण को उतारना है |
जीवन ....
पितरों की टहल सेवा देवों की उचित पूजा
|
ऋषियों के संग जैसा कर्तव्य है न दूजा
|
निष्कपट स्वच्छ सुन्दर जीवन गुजारना है
| जीवन...
नेकी के काम करके फल की न चाह लाना |
निष्काम भाव होकर औरों के काम आना |
शिक्षा का सूत्र है यह मन में विचारना
है | जीवन ...
शुभ चिह्न आर्यों का यज्ञोपवीत है यह |
सब श्रेष्ठ लोग पहनें ऋषियों की रीत है
यह |
दुनियाँ में “पथिक” इस के यश को
निखारना है | जीवन ....
(साभार :- “पथिक” भजन संग्रह भाग २,
रचयिता :- पण्डित सत्यपाल जी “पथिक” अमृतसर, प्रकाशक :- आर्य प्रकाशन, दिल्ली)